- आशीष नड्डा
लोहड़ी एक दिन का त्यौहार नहीं है बल्कि 7 रातों तक चलने वाला पर्व है लोहड़ी शुरू हो चुकी है । हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ऊना मंडी बिलासपुर हमीरपुर सोलन आदि जिलों में बकायदा बच्चे 7 दिन हर शाम अपने गाँव के हर घर में जाकर लोहड़ी के रूप में कुछ गाते हैं। बदले में उन्हें पैसे या अनाज मिलता है । पर वो रोज नही सिर्फ पहले और अंतिम दिन मिलता है। लड़के और लड़कियों की अलग अलग टोलियां होती हैं । लड़को की लोहड़ी जहाँ बेसुरी चीखना चिल्लाना टाइप होती है वहीँ लड़कियां बहुत मधुर आवाज और सलीके से गाती हैं ।
लड़कों वाली “पांच पांच दस आगे मिली बस बस ने की टी टी आगे मिला डीसी” आदि असंख्य शब्दों की तुकबंदी टाइप लोहड़ी का काव्य लिखने वाले लेखक कौन थे इसका कोई विवरण नहीं मिलता है। परंतु ज़िला तहसील तो दूर हर गाँव में अलग अलग लोहड़ियाँ मिल जाती हैं उस हिसाब से लगता है। हर गाँव में अलग अलग खुरापाती साहित्यकार रहें होंगे जिन्होंने लोहड़ी काव्य की अपने खुरापाती दिमाग से समय समय पर रचना की। जो भी है उन बेनाम शख्शों का अमूल्य योगदान मैं लोहड़ी काव्य गठन में मानता हूँ । हालांकि लड़कियों के लोहड़ी गीत मधुर लोकगीत रहते हैं।
आजकल के ज्यादातर डूड अब अनाज नहीं लेते करंसी फोकस हो गए हैं । उस करंसी का क्या करते है मुझे आजकल पता नहीं है । परंतु जब तक मैं अपने गावँ की लोहड़ी मंडली का हिस्सा था हम लोग लोगों से अनाज लेते थे । फिर बोरो में जमा उस अनाज को बाकयदा ग्राहक ढूंढ के बेचा जाता था। बदले में जो धन आता था उससे क्रिकेट बैट लिया जाता था। जो सबका सार्वजनिक बल्ला हो जाता था। ज्यादा अनाज इक्कट्ठा करने के लिए छोकरो की टोलियां आसपास के गावँ भी हो आती थीं।
ये वीडियो अपने गाँव की चिलर पार्टी का है ये हमारे घर में लोहड़ी गा रहे है । इनको देख के तो नहीं लगता अनाज इक्कठा करने से लेकर उसे उठाने ग्राहक ढूंढने रेट फिक्स करने फिर क्रिकेट बल्ला आदि खरीदने की लंबी और अनुभवी प्रक्रिया को ये अंजाम देते होंगे या देने की हिम्मत रखते होंगे । पर खैर इन्होंने परंपरा को चलाया हुआ है वही बहुत बड़ी बात है। धीरे धीरे ये परम्परा लुप्त भी हो रही है।
आशीष नड्डा वर्तमान में IIT Delhi में रिसर्च स्कॉलर है एवं रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में काम करने वाली गिनी-चुनी MNRE-सर्टिफाइड हिमाचली कंपनियों में से एक ‘सनकृत एनर्जी प्राइवेट लिमिडेट’ के डायरेक्टर भी हैं।